प्रेम ही जीवन का आधार

 

                                 प्रेम ही जीवन का आधार 



प्रेम ही जीवन का आधार,
प्रेम नहीं तो फीका ये संसार ।
जीवन का बस इतना ही सार,
आपस में हो स्नेह और प्यार ।

प्रेम में राधा हुई थीं दिवानी,
कान्हा संग करतीं आनाकानी ।
प्रेम में सीता अपना सुख हारीं,
फिरी राम संग वन में मारी मारी ।

प्रेम में सुध बुध खोकर मीरा,
विष का प्याला पी जाती है ।
लाख जतन करता हर कोई ,
गिरिधर के ही गुण गाती है ।

प्रेम में जोधा के, अकबर हारे,
महल के भीतर मंदिर बनवाए ।
प्रेम में, धर्म के सब बंधन टूटे,
मुसलमां होकर बुत पुजवाए ।

प्रेम जाने मजहब की लकीर,
प्रेम में खोए राजा, पीर, फ़कीर ।
प्रेम से ही जागृत यह संसार है,
प्रेम नहीं तो जीवन बेकार है ।


  - हनुमान गोप 

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